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महमूद फारूकी केस में कोर्ट का कहना था पीड़िता ने जोरदार तरीके से अपना विरोध दर्ज नहीं किया , इसलिए बलात्कार के आरोप से बरी किये जाते हैं. इसे विषय को ध्यान में रखते हुए ये कविता लिखी गयी है.
जब भी चीखी-चिल्लाई मैं, दर्ज किया अपना विरोध ..
तुमने जड़ा मेरी जुबान पे ताला
तब से मैंने दबे शब्दों में ना कहना सिख लिया
जिसको तुमने मेरी हाँ समझ लिया
क्या उसमें मेरी हाँ थी?
जब भाई स्कूल जाने लगा और मैं घर का काम करने लगी
क्या किसी ने मुझसे पूछा भी था?
मेरी हाँ या ना
बेटा – घी का लड्डू टेढ़ा ही भला
और मैं पराया धन
जब खेलने-कूदने के उम्र में मेरी हांथो में मेहंदी रच गयी
दबे शब्दों में ही मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
वो एक व्याध की तरह कूद पड़ा मुझ पर
रोंद्ता रहा मेरा तन मेरा मन
यह भी नहीं सोंचा – रो रहा है मेरा मन का कोना कोना
अपना सब कुछ छोड़ कर तो आयी थी मैं
दबे शब्दों में ही, मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
जब मैं छोटी थी
बेच दिया किसी विधुर वृद्ध को
वो उसी तरह पालता रहा जैसे पालता था बकरियां
मैं रजस्वला भी नहीं हुई थी
वो वृद्ध कूद पड़ा था मुझ पर
दबे शब्दों में ही, मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
उस वेश्या गृह में जब लगी थी मेरी बोली
नथ उतारने की कीमत
दबे शब्दों में ही, मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
दूधो नहाओ पूतो फलो, क्या मैंने कहा था
तुम अपना काम काम करते रहे, मैं माँ बनती रही
गर्भ-धारण करती रही, प्रसव पीड़ा सहती रही
क्या हर बार, मेरी हाँ ही थी?
दबे शब्दों में ही, मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
कौतूहल बस सूर्य को बुला लिया
मेरे इनकार के बाद भी वो पुत्र देकर चला गया
एक अबला ने अपने प्राण को नदी में बहा दिया
क्या उसमें में भी मेरी हाँ थी?
तुम्हारे ही द्वारा निर्धारित सारे नियम कानून
फिर क्या मेरी हाँ, क्या मेरी नहीं
जो भी था अर्जित, सर्जित, सब हुआ विसर्जित
तुमने मुझे कर दिया था दुर्योधन को समर्पित
क्या उसमें मेरी हाँ थी?
जीत कर लाया गांडीव धारी
बन गयी मैं पांडवो की अर्धांगिनी
दबे शब्दों में ही, मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
वो पल जब अधर्म धर्म पर हावी था.
शील मेरा छीनने वाला था
अन्धकार के उन पलों में
मेरे थरथराते तन से वसन से, मेरे होंठो से
निकले मद्धिम स्वर में ना को तुम ने हाँ समझ लिया
मेरे तन पर बलात ही अपना अधिकार जमा लिया
क्या उसमें मेरी हां थी?
दबे शब्दों में ही, मैंने ना ही तो कहा था
तो क्या उसमें मेरी हाँ थी?
4 replies on “क्या उसमें मेरी हाँ थी?”
अदभुत। मुझे लगा पीड़ा ओर व्यंग दोनों ही बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किये गए है। आभार
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दिल को दहला देने वाली घटना।
दुर्भाग्य से दुनिया को दहला नहीं पातीं है
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Oh most painful feelings of a girl/woman.
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wow awsome se bhi awsome h apki pankitya …. dil ko hilaaa k rakh diya adbhut h apki hr line …. pura bachpan se leke ab tk sab kuch dikha diya apne
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