मन के बियावान में,
उन वीथियों के सुनसान में,
तुम्हे ढूंढता हूँ कहीं …
पत्तों की सरसराहट के बीच,
मन की अकुलाहट के बीच
लगता है तुम मिलोगी वहीं..
आसमान के उमड़ते-घुमड़ते बादलों में,
असंख्य लोगों की भीड़ में
तुम्हे ढूंढता हूँ कहीं …
वो दूर बजते सितार में,
मंदिरों के घंटियों की आवाज में ..
मस्जिदों के अजान में ..
गुरु के सबद में …
तुम्हे ढूंढता हूँ कहीं …
मन के किसी कोने में..
इस तन के होने और न होने में …..
इसी उहापोह में ….
तुम्हे ढूंढता हूँ कहीं …
इस सड़क के कोलाहल में..
इस भीड़ के अकेलेपन में ..
मिलोगी कहीं चुपचाप बैठी हुई.
दुनिया की नजरों से आँखें छुपाकर…
2 replies on “तलाश”
Really so nice Mukul …
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Thanks Champs ji
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