कई दिनों से उसका व्यवहार असामान्य था. उसके व्यवहार के कारण माँ कुछ बोल नहीं रही थी. अन्दर ही अन्दर गली जा रही थी. वो चुपचाप शून्य को देखता रहता था. उसकी चंचलता- चपलता, उसकी मुस्कान – सब कुछ तिरोहित थीं.
खाना भी ठीक से नहीं खाता था. अचानक चौंक जाता था और चिल्ला पड़ता था – “वो मुझे ले जायेंगे और मार डालेंगे, देखो फ़ोन की घंटी बज रही है, उसी का फ़ोन का होगा, कोई मत उठाना, मिस्ड कॉल हो जाने दो. वो लोग फ़ोन कर लोगों को बुलाते हैं और मार डालते हैं, मुझे भी मार डालेंगे, मुझे इन जल्लादों से बचाओ. “
माँ यह सब सुनकर घबडा जाती थी. पति तो कब स्वर्ग सिधार गए थे, तब बेटा सिर्फ २ महीने का था. बहुत जतन से पढाया लिखाया था, योग्य और होनहार बनाया था, आज उसके बुढापे का सहारा पागलों की तरह कर रहा है.
बेटा ने फ़ोन को स्विच ऑफ करके रखा था फिर भी वो बीच-बीच में चिल्ला पड़ता था- फ़ोन की घंटी बज रही है, उसी का फ़ोन का होगा, कोई मत उठाना, मिस्ड कॉल हो जाने दो.
माँ ईश्वर से पार्थना कर रही थी – प्रभु सारा कष्ट मेरे जीवन में ही लिखा है क्या? भरी जवानी में विधवा हुई. मन और तन पर दोनों पर संयम रखी. लोगों की कुदृष्टि से खुद को बचाकर रखा और आज जब सुख देखने के दिन आये तो ये देखना पड़ रहा है.
सुबह स्नान कर, सफ़ेद कपड़ों में खुद को लपेट कर भगवान् सूर्य की पूजा कर रही थी और अपने पुत्र के जल्द ही स्वस्थ हो जाने की विनती कर रही थी. इतने में, एक आवाज आयी ,” मुझे बचा लो, मेरा मोबाइल छीन रहे हैं, मुझे पकड़ कर ले जा रहे हैं.” यह उसके बेटे की आवाज थी.
माँ के हाथ से पूजा का लोटा गिर गया और वो भाग कर बेटे के कमरे में गयी.
“क्यों हांफ रही हो माँ, क्या हो गया? किसी ने तुम्हे डराया? किसकी ऐसी मजाल, जो मेरी माँ को डराए. उसे मैं जिन्दा दफ़न कर दूंगा?”
माँ कुछ नहीं बोली, वो बस जान-बुझकर चुप रह गयी.
बेटा, माँ की गोद में सो गया. माँ अपने आंचल से बेटे की नजर उतारने लगी.
माँ खाना बना रही थी, बेटा भी रसोई घर में आ गया और माँ के काम में हाथ बटाने लगा. दाल और चावल तैयार हो चुके थे. घी का बघार लगाना बाकी था. इतने में माँ ने चाक़ू निकाला. माँ के हाथ में चाक़ू देख बेटा चिल्ला पड़ा,” माँ, तुम कहाँ हो? रसोई घर में राक्षसिनी है, वो मेरा खून पी जायेगी. उसके हाथ में तलवार है.”
माँ घबडा कर चाक़ू को खिड़की के बाहर फेंक दी.
माँ को खाली हाथ देखकर बेटा बोला,” आओ माँ, खाना खा लेते है.” उसका व्यहार एकदम सामान्य था, जैसे अभी कुछ हुआ ही नहीं हो. फिर दोनों बैठकर एक ही थाली में खाना खाने लगे.
“माँ, खाने में नमक ज्यादा है.”
“नहीं बेटा, नमक तो एकदम स्वादनुसार है.”
“नहीं, माँ, नमक ज्यादा है.” आओ अप्रेजल-अप्रेजल खेलते है.
ये अप्रेजल क्या होता है, बेटा !
“माँ, तुम्हारे काम का रिव्यु होगा, तुम घर पर जो काम करती हो, वो ठीक से करती हो या नहीं. क्या शुरू करें ये खेल.”
बेटा खुश हो जाय, इसलिए माँ राजी हो गयी.
“मैं मैनेजर का रोल प्ले करूंगा, और आप एम्प्लाई का.”
“ठीक है,” ये कहते हुए माँ ने सर हिलाया.
“चलिए, आप अपनी साल भर की अचिवेमेंट बताइये!”
“मेरा अचिवमेंट क्या होगा? तुम्हारा ख्याल रखा! तुम्हे कोई कष्ट नहीं हो इसका ध्यान रखा”
“ये तो बिज़नस एज usual हुआ. आप ने एक्स्ट्रा क्या किया.”
“माँ अपनी संतान को खुश रखे, इससे ज्यादा वो क्या करेगी!”
“मैं बताता हूँ, आपको क्या-क्या करना चाहिए था. आप को एक्स्ट्रा माईल कवर करना था. ”
“बेटा!, मेरी समझने वाली भाषा में बात करो.”
“यही तो प्रॉब्लम है माँ, आपने रीस्किल नहीं किया खुद को. आज भी हाथो से बर्तन धोती हो, माइक्रोवेव यूज़ नहीं करती हो. कैसे survive करोगी! इस मॉडर्न ऐज में. ऑटोमेशन इज द की मम्मा! ”
“बेटा!, हाथों से सफाई अच्छी होती है.”
“इतना त्याग कर, बलिदान कर क्या मिला आप को? आपने अपना ख़याल नहीं रखा! कल बेटे की शादी हो जायेगी, वो घर छोड़ देगा, आप अकेले हो जायेंगी. किसके सहारे बुढ़ापा कटेगा! आपको दूसरी शादी कर लेनी चाहिए थी, भावुक होकर रुकना नहीं था, आगे बढ़ना था. त्याग और समर्पण सब मूर्खों के चोचले हैं.”
माँ आँखें फाड़-फाड़ कर देख रही थी, बेटा क्या कह रहा है?
माँ को परेशान देख बेटे ने कहा, “ अरे माँ, बस ये एक खेल था, तुम चिंता मत करो. माँ ये जो अप्रेजल का खेल है –लौटरी की तरह है, किसी को अवार्ड, किसी को रेटिंग्स, किसी को लेऑफ, जो जैसे सेट ऑफ जाए ग्राफ में.”
खेल के साथ-साथ खाना भी ख़त्म हो चुका था. बेटा माँ के गोद में सर रखकर रो रहा था, उसे लग रहा था उस ने माँ का दिल दुखा दिया है. एक बार फिर रोने लगा और रोते-रोते कहा,” मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिस्ता हो जाऊं, माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं.”
माँ पुरानी यादों में खो गयी थी. जब बेटा पहली बार घर छोड़कर जा रहा था, कितना रोया था स्टेशन पर, गले से लिपट-लिपट कर.
माँ चुपचाप मनोचिकित्सक के पास चली गयी और कुछ दवाइयां लेकर आयी. माँ ने रात के खाने में दवाइयां मिला दी. बेटा खाना खाते-खाते सो गया, शायद दवाइयों का असर था.
सुबह उठाते ही बेटा चिल्लाने लगा,” ये डायन मुझे मार डालेगी, मुझे एक बहुत बड़े पीपल के पेड़ पर बिठाकर, उड़ा ले गयी. वहां सबको काटा जा रहा था, आरी से, मैं किसी तरह से बचकर आया हूँ. “ वहाँ का दृश्य बहुत ही भयावह था. लोगो की बलि दी जा रही थी. “
माँ सोच रहती थी- शायद इसे बचपन की कोई कहानी याद आ गयी होगी या तो रात में कोई बुरा सपना देखा होगा.
माँ और बेटा दोनों टीवी देख रहे थे, इतने कॉल बेल बजी. माँ ने दरवाजा खोला, शामने, पश्चिमी परिधान में, एक स्त्री और एक पुरुष खड़े थे. उनको देखते ही बेटा चिल्लाया- यही दोनों वो जलाद है, जो लोगों को मारते है, इनको अन्दर आने मत देना.” उछलकर भाग गया और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया वैसे ही जैसे मेढक पानी में कूद जाता है.
दोनों स्त्री-पुरुष अन्दर आ गए और माँ को प्रणाम किये. माँ ने उन्हें आदरपूर्वक बिठाया. उन्होंने बताया कि वो उनके पुत्र के ऑफिस से आये हैं और वो कई दिनों से ऑफिस से नहीं आ रहा है तो पता करने आ गए हैं कि क्या हुआ, सब ठीक तो है न.
मां ने कहा,” कुछ दिनों से बेटा विक्षिप्त सा व्यहार कर रहा है और रोने लगी”
दोनों ने उनके आंसू पोछे और कहा, “ माता जी, आपका पुत्र ठीक हो जाएगा. कंपनी उसका ईलाज करवायेगी.
वो इस साल का बेस्ट परफ़ॉर्मर है, हम लोगों उसे एसोसिएट ऑफ़ द इयर का अवार्ड देने आये हैं. ये देखिये – सर्टिफिकेट.
माँ ने उनसे आग्रह किया कि वो चले जाए और अपने पुत्र के कमरे की और दौड़ पडी, यह शुभ समाचार देने के लिए.
कमरे के बाहर – मुड़ा-तुड़ा एक कागज़ का टुकड़ा पड़ा था. कमरे से कोई आवाज नहीं आ रही थी. माँ ने धडकते दिलों से और कांपते हाथों से उस कागज़ के टुकडे को खोला और चश्मा लगाकर पढने लगी.
उस पर लिखा था –
माँ जब तक तुम्हारे हाथ में चिट्ठी आयेगी, तब तक देर हो चुकी होगी, जो लोग आये हैं, वो जा चुके होंगे. वो दोनों बहुत बड़े जल्लाद है. वो किसी किसी को काल-कोठरी में बुलाते हैं, उसका मोबाइल छीन लेते है. कमरा अँधेरा होता है, उससे साल भर का लेखा-जोखा लेते हैं और फिर मार देते हैं और उस मरे आदमी की आत्मा सोशल मीडिया पर भटकती रहती है, और अपने लिए, अपने बच्चों के लिए. उनके लिए न्याय मांगते रहती है.
यह अकाल मृत्यु है इसलिए इन आत्माओं को न स्वर्ग में जगह मिलती, न नरक में, वो फेसबुक, ट्विटर आदि के पन्नों पर भटकती रहती हैं
माँ को अब कुछ समझ नहीं आया उसने सर्टिफिकेट को अन्दर सरका दिया. अब कमरे से हंसने की आवाज आ रही थी और कोई बोल रहा था “ एमप्लाई को ह्यूमन बीइंग समझो, तुम उसे रिसोर्स समझते हो, कमोडिटी समझते हो.
अब इस सर्टिफिकेट का क्या –
“मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या,
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या,
मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या.”
One reply on “जल्लाद”
Very nice one Mukul ji
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